अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन ने पीएम मोदी के इंटरव्यू के लिए 45 घंटे उपवास रखा. 45 घंटे तक उपवास करने पर शरीर में अलग-अलग चरणों में बदलाव होते हैं और 45 घंटे का उपवास शरीर में ऑटोफैगी (Autophagy) की प्रक्रिया को शुरू कर सकता है.
What happens to your body if you you do Fasting for 45 hours?भारतीय संस्कृति में सदियों से व्रत और उपवास की परंपरा रही है। चाहे एक दिन के लिए नियमित और संयमित भोजन करना हो या पूरी तरह से उपवास रखना, यह प्रथा हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा सदियों से निभाई जा रही है। साथ ही, पूरे साल में कई ऐसे त्योहार आते हैं, जब व्रत रखा जाता है। कई लोग व्रत को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान मानते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने भी यह माना है कि उपवास रखने से शरीर में कई अनोखे बदलाव देखने को मिलते हैं। उपवास या व्रत एक ऐसी अवस्था होती है, जब शरीर को लंबे समय तक भोजन नहीं मिलता है। यह समय बढ़ने के साथ शरीर में कई महत्वपूर्ण जैविक (बायोलॉजिकल) और मेटाबोलिक प्रक्रियाएं शुरू होती हैं। 45 घंटे तक उपवास करने पर शरीर में विभिन्न चरणों में बदलाव होते हैं, जो ऊर्जा स्रोतों के उपयोग, मांसपेशियों की मरम्मत और हार्मोनल परिवर्तनों से जुड़े होते हैं। आइए, हम आपको बताते हैं कि यदि आप 45 घंटे तक व्रत रखते हैं, तो इससे आपके शरीर में क्या-क्या बदलाव होते हैं।

हाल ही में अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 3 घंटे लंबा पॉडकास्ट किया। फ्रिडमैन ने यह खुलासा किया कि उन्होंने इस इंटरव्यू के लिए 45 घंटे तक उपवास रखा था। पीएम मोदी के साथ पॉडकास्ट से पहले फ्रिडमैन ने 45 घंटे तक केवल पानी पिया। वहीं, पीएम मोदी ने समझाया कि उपवास सिर्फ भोजन छोड़ना नहीं है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और यह पारंपरिक तथा आयुर्वेदिक प्रथाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
पहले 6-12 घंटे: ग्लूकोज पर निर्भरता
– उपवास शुरू होने के बाद पहले कुछ घंटों तक शरीर प्राथमिक ऊर्जा स्रोत ग्लूकोज का उपयोग करता है.
– भोजन पचने के बाद ब्लड में शुगर का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है.
– इस दौरान शरीर ग्लाइकोजन (glycogen) नामक संग्रहीत कार्बोहाइड्रेट को तोड़कर ग्लूकोज में परिवर्तित करता है, जो शरीर को ऊर्जा देने में मदद करता है.
– अग्न्याशय (pancreas) इंसुलिन (Insulin) का उत्पादन कम कर देता है, जिससे शरीर फैट-बर्निंग मोड में आना शुरू करता है.
12-24 घंटे: ग्लाइकोजन की कमी और फैट बर्निंग शुरू
– लगभग 12 घंटे के बाद शरीर के ग्लाइकोजन स्टोर्स खत्म होने लगते हैं.
– शरीर अब ऊर्जा के लिए फैट ब्रेकडाउन (Lipolysis) की प्रक्रिया शुरू करता है.
– यह प्रक्रिया केटोसिस (Ketosis) की ओर ले जाती है, जिसमें फैट से केटोन बॉडीज़ (Ketone Bodies) बनने लगती हैं, जो दिमाग और मांसपेशियों के लिए वैकल्पिक ईंधन का काम करती हैं. यानी आपके शरीर का फैट बर्न होने लगता है और शरीर उसी से ऊर्जा लेने लगता है.
– ऑटोफैजी (Autophagy) की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें क्षतिग्रस्त कोशिकाओं और बेकार प्रोटीन को हटाकर नई कोशिकाओं का निर्माण होता है.
24-36 घंटे: ऑटोफैगी बढ़ती है, हॉर्मोनल बदलाव होते हैं
– ऑटोफैगी तेज़ हो जाती है, जिससे शरीर पुरानी और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाओं का निर्माण करता है. कई वैज्ञानिकों का तो यहां तक मानना है कि ऑटोफैगी की प्रक्रिया में शरीर के कैंसर सेल तक खत्म हो जाते हैं.
– ह्यूमन ग्रोथ हॉर्मोन (HGH) का स्तर 3 से 5 गुना तक बढ़ जाता है, जिससे मांसपेशियों की मरम्मत और चर्बी जलने की प्रक्रिया तेज़ होती है.
– शरीर में एड्रेनालाईन (Adrenaline) और नॉरएड्रेनालाईन (Noradrenaline) हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे शरीर अधिक फैट बर्न करता है.
– शरीर इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ा देता है, जिससे भविष्य में ब्लड शुगर नियंत्रित रखने में मदद मिलती है.
36-45 घंटे: गहरे उपवास के प्रभाव
– ग्लूकोज का उत्पादन अब मुख्य रूप से ग्लूकोनियोजेनेसिस (Gluconeogenesis) से होने लगता है, जिसमें शरीर एमिनो एसिड और लैक्टिक एसिड से ग्लूकोज बनाता है.
– शरीर कैलोरी खपत को अधिक कुशलता से नियंत्रित करता है, जिससे मेटाबॉलिक रेट (Metabolic Rate) गिरने के बजाय 10-15% तक बढ़ सकता है.
– सूजन (Inflammation) कम हो जाती है, जिससे हृदय रोग, कैंसर और न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा कम हो सकता है.
– बॉडी फैट का तेजी से उपयोग होने लगता है, जिससे वजन घटता है.
– आंतरिक कोशिकीय मरम्मत (Deep Cellular Repair) की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है, जिससे पुरानी और कमजोर कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाओं का विकास होता है.
दुनिया भर में हुए हैं ऑटोफैजी पर रिसर्च
45 घंटे का उपवास शरीर में ऑटोफैगी की प्रक्रिया को शुरू कर सकता है. जापानी वैज्ञानिक योशिनोरी ओसुमी (Yoshinori Ohsumi) को ऑटोफैगी पर किए गए उनके शोध के लिए नोबेल पुरस्कार मिला. उन्होंने ये दिखाया कि ऑटोफैगी एंटी-एजिंग, कैंसर-रोधी प्रभाव, और न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों (जैसे अल्जाइमर और पार्किंसंस) से बचाव में सहायक हो सकती है. 2019 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 24 घंटे से अधिक का उपवास ऑटोफैगी प्रक्रिया को ट्रिगर कर सकता है. वहीं 2018 में सेल मेटाबॉलिज्म जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 48 घंटे का उपवास स्टेम सेल रीजेनेरेशन (Stem Cell Regeneration) को बढ़ा सकता है, जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है.

45 घंटे उपवास से ये हो सकते हैं शरीर में फायदे
1. वजन घटाने में मदद: फैट बर्निंग प्रक्रिया तेज़ होती है.
2. इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ती है: जिससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम होता है.
3. ऑटोफैगी (Autophagy) से कोशिकीय सफाई: पुरानी और खराब कोशिकाएं हटती हैं.
4. सूजन कम होती है: जिससे गठिया, हृदय रोग और अन्य पुरानी बीमारियों का खतरा कम होता है.
5. मस्तिष्क स्वास्थ्य बेहतर होता है: केटोन बॉडीज़ मस्तिष्क के लिए ऊर्जा स्रोत बनती हैं, जिससे मानसिक स्पष्टता बढ़ती है.
6. पाचन तंत्र को आराम मिलता है: जिससे आंतों की कार्यक्षमता में सुधार होता है.
7. जीवनकाल बढ़ सकता है: चूहों पर किए गए अध्ययनों में उपवास से जीवनकाल लंबा होने के संकेत मिले हैं.